बचपन में ब्रिटेन और लन्दन के बारे में बहुत पढ़ी थी। चौथा पांचवा से लेकर कॉलेज तक की किताबो में ब्रिटेन, लन्दन और महारानी एलिज़ाबेथ के बारे में कुछ ना कुछ रहता ही था। उस ज़माने में हमारे ही गाँव के एक भलमानस लन्दन जा के ICS हो गए। श्री T P Singh जी हमारे ही गाँव के थे । जब वे ICS बन के आये तो उनको हाथी पे बैठा के पुरे इलाके में घुमाया गया था। उस ज़माने में मेट्रिक पास करना भी बड़ी बात होती थी।ICS बनना तो खैर बड़ी बात थी ही लन्दन जाना भी आसान नहीं था। उस ज़माने में लन्दन जाने के लिए कोल्कता या मुंबई जा के पानी का जहाज पकड़ना पड़ता था। महीने भर में लोग लन्दन पहुचते थे। उस जामने में फ़ोन भी आसान नहीं था सो लोग पहुच गए या नहीं इसका पता भी बहुत दिन बाद चलता था। उस उम्र में जब मेरी उम्र गुडिया खेलने की थी तो लन्दन जाने का मन तो था मगर वह स्वपन को हकीकत में बदलने जैसी बात थी। फिर पढाई लिखाई , शादी , बाल बच्चो का भरण पोसन , उनकी पढाई ये सब में कब जमाना बीत गया की लन्दन जाने की बात दिल के किसी कोने में दफ़न होकर रह गयी।
खैर तो नहीं, हाँ बड़ी बिटिया ख़ुशी हमसे पहले ही लन्दन पहुच गयी। लन्दन पहुचते ही माता जी की किरपा से उसका दाखिला ना केवल लन्दन के विख्यात विश्वविद्यालय में हो गया वरनएक अच्छी से student नौकरी भी लग गयी। फिर बिटिया ने ही बुलावा भेजा के मम्मी आ जाओ तुमको बहुत मिस कर रही हूँ और तुम लन्दन देख के खुश भी हो जोगी। passport तो मेरा पहले से ही तैयार था , समस्या केवल वीसा की थी । uk और usa का वीसा बनवाना आज कल आसान नहीं काम नहीं है। uk का वीसा बनवाने के लिए आपको रांची से कोलकता जान होगा वह पर agent आपके अंगूठे और आपका फोटो computer से लेगा और कुछ interview भी , मसलन आप किया करते हैं, कियो जा रहे हैं, कहा रहेंगे , कितना दिन रहेंगे, पहले भी गयी या पहली बार जा रहे हैं, आपका कोई और भी लन्दन में रहता है , अगर हाँ तो लन्दन में कहा और किया करते है वैगेरह वैगेरह । खैर मन में उमंग हो तो सब काम हो ही जाता है। मेरी, पति और छोटी बेटी का वीसा भी समय पर बन ही गया और वह दिन भी आ गया जब हमें रांची से लन्दन जाना था।
रांची से मुंबई होते हुए लन्दन की flight हमने पहले ही एयर इंडिया से बुक कर ली थी। रांची से हमारा विमान 3 बजे शाम को मुंबई के लिए उड़ान भरा और हमलोग करीब 8 बजे मुंबई पहुचे। domestic terminal के अन्दर से ही हमलोगों को एयर पोर्ट के बस से international terminal के तरफ ले जाया गया। एयर इंडिया का हमारा विमान रात २.30 बजे लन्दन के लिए रवाना होने वाला था। वही पैर हमलोगों ने रुपया देकर पौंड ख़रीदा और इम्मिग्रतिओन के लाइन में लग गए। 1 घंटा में सब कुछ clear हो गया। २.३० बजे के बदले ३.३० बजे हमारा विमान लन्दन के एयर एयर एयर एयर खैर खैर खैर। Air इंडिया के बारे में khair क्या लिखना...इसकी तो हर चीज़ ही निराली है॥ ना तो सीट का earphone काम करता था ना ही सामने का tv स्क्रीन । शिकायत करने से बस रता रटाया जवाब मिलता "yes madam it will be ok soon"...मगर यह लन्दन की पूरी यात्रा तक कभी ठीक नहीं हुआ। wash basin और toilet तो और भी गंदा । खैर हमें तो लन्दन पहुचने के जल्दी थी और अपनी प्यारी बिटिया का मुह देखना था एस लिए सब कुछ अच्छा ही लग रहा था। करीब 8 बजे सुबह (लन्दन समय ..भारत का दोपहर 1 बजे ) हमारा विमान लन्दन के हीथ्रो एयर पोर्ट पर लैंड किया। यह दुनिया के व्यस्तम एअरपोर्ट में से एक है। immigration clearance जल्दी ही हो गया । बाहर हमारी बिटिया बेसब्री से हमारा इन्तेजार कर रही थी। बहार आते ही वो हमसे इस कदर लिपट गयी की लगता था कभी ना छोड़ेगी । माँ बेटी दोनों के आँखों में आंसू थे ।
लन्दन में हमारे ठहरने के लिए indian ymca में अच्छा इन्तेजाम किया था। चुकी वो हॉस्टल में रहती थी अत: हम लोग तो उसके साथ नहीं रह सकते थे। indian ymca सेंट्रल लन्दन में भारतीय लोगो के रहने का बहुत ही अछि जगह है। यहाँ का पूरा माहोल भारतीय है खाना पीना नाश्ता भी चावल दाल रोटी इडली डोसा सब कुछ । बहुत से भारतीय लोग वह ठहरे थे । वही हमारी मुलाकात ccl के रेखा सिंह से भी हुयी। वो अपनी बिटिया के convocation में भाग लेने के लिए लन्दन आयी हुयी थी। बड़ा अच्छा लगा मिल कर ....विदेश में कोई भारतीय मिल जाए तो मज़ा दुगुना हो जाता है।
लन्दन में देखने के लिए चीजों की भरमार है। लन्दन देख के लगा की यहाँ ब्रिटेन वासी कम और बहार के लोग ज्यादा ही बसे हैं। भारतीय , पाकिस्तानी, बंगलादेशी , के अलावा अमेरिका उगांडा अरब अफ्रीका सब देशो के लोग भरे हुए दिखाई पड़े। मगर वहां रह रहे भारतीय अपने देश के भारतीय से अलग लगे... शांत अनुशाषित और सौम्य । विश्व के सबसे विकसित और व्यस्त शहर में लन्दन की गिनती होती है मगर सब कुछ व्यवस्थित और शांत है की आश्चर्य होता है की कैसे ये सब मैनेज होता है। यातायात के लिए underground रेलवे है जिसे वह tube कहते है और लाल रंग की दो मंजिला बसे भी...जो अपने मुंबई की बसों की याद दिलाती है,,, मगर हमरी मुंबई की बसे उसके सामने कही नहीं टिकती। सड़क इतनी स्सफ सुथरी है की आप सड़क पैर ही आराम से पालथी मार के बैठ सकते है। कही भी हमें सड़क पर एक भी खर पतवार भी दिखई नहीं दिया। सड़क बहुत चौड़ी नहीं है ...उससे ज्यादा चौड़ी तो हमारी बरिआतु रोड की सड़क है मगर फिर भी कही कोई जाम नहीं...कही होर्न नहीं सुनायी पड़ी। साड़ी बसे काफी आरामदायक और gps से लेंस है। बस हो या tube आपको एक ओएस्टर कार्ड खरीदना होगा जिसमे भाडा prepaid होता है... आप केवल बस या metro(tube) में बैठने के पहले बस के बॉडी से ओएस्टर कार्ड को सत्ता दीजिये...
पहला दिन हमलोगों ने होटल में ही आराम किया ॥ दुसरे दिन हमलोग tames के किनारे घुमने गए। लन्दन में जन जीवन की आपर चहल पहल यहाँ की दुकानों , तुबे रेल , माल , night क्लब में देखने को मिलती है। त्रफ्गल स्कुयार में कबूतरों के झुण्ड को दाना चुगाते हुए हम लोग भी लोगो की भीड़ में शामिल हो गए। नेशनल आर्ट गैलेरी के अन्दर विश्व के दुर्लभ चित्रों को देखते हुए बहार आये तो सामने ही एडमिरल लोर्ड नेल्सन की विशाल प्रतिमा दिखाई पड़ी॥ ये वही वीर पुरुष है जिसने नेपोलियन को पराजय का कड़वा स्वाद चखाया था। दोपहर का भोजन इंडिया हाउस में खाने के बाद हमलोग तमस नदी के किनारे 750 वर्ष पूर्व बने tower of london देखने गए। इसकी मोती मोती पत्थर की दीवारे और लोहे जड़े लकड़ी के फाटक जैसे अपने बीते इतिहास की गौरव गाथा कह रहे थे । यह इमारत अपने अन्दर बहुत से दर्द भरे दास्तान छिपाए हुए है। वह से हमलोग hyde और जमेस पार्क देखने गए। इसकी हरियाली और sarpentine झील की खूबसुरती का किया कहना ॥ दुसरे दिन हमलोग madam तुसाद के संग्रहालय देखने गए। यहाँ विश्व के महँ व्यक्तियों के मोम के बने आदमकद जीवंत मूर्तियों को देख कर मन भाव भिभोर हो गया। वही पर इन्दिता गाँधी, अमिताभ बच्चन , नेल्सन मंडेला जैसी महान विभूतियों की मोम की बनी आदमकद मुर्तिया राखी है जो साक्षात् असली लगाती है। फिर हमलोग bucckingam palace जो महारानी का राजसी निवास है देखने गए। द्वार पैर तैनात लाल कपडे और काली टोपी पहने प्रहरी काफी आकर्षक लग रहे थे। उनका परेड देखने लायक होता है। तिमेस नदी के किनारे ही लन्दन आई london eye है ...यह गोल चक्कर झुला के तरह है ..जो हमारी रांची के जैपाल stadium ke disney लैंड में लगता है। मगर इसका आकर बहुत ही विशाल है और एस पैर बैठ कर पुरे लन्दन का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। पास में ही बिग बेन तोवेर (घंटा घर) है जो अपनी कलाकृति के चलते विश्व भर में प्रशिद्द है।
अपने लन्दन परवश के दौरान मई कई परचित भारतीयों के घर भी गयी ॥ मगर लन्दन में कही भी बड़े बड़े घर दिखाई नहीं पड़ेसब घर छोटी छोटी और duplex टाइप की थी उससे ज्यादा आलिशान माकन तो हमरे रांची शहर में है... हमारी सड़के भी ज्यादा चौड़ी है मगर सोचती हूँ क्या कारन है की हमारा सहर glamrous नहीं लगता । इसका एक ही उत्तर है हमें रहने का शौर नहीं ... कही भी खड़े होकर हम लागुशंका कर देते हैघर का कचड़ा सड़क पैर फेक देते हैं , जहा मन हुआ ठुक देते हैं ... बस स्टैंड की कुर्सी उखड कर हम अपने घर ले जाते हैं काश हम थोडा भी सुधर जाये तो रांची की खूबसूरती बेपनाह हो जाए।
लन्दन में भारतीय सब जगह मिल जाते हैं .... खूब काम करते है और अंड से रहते है। हर दुसरे मोड़ पैर भारतीय भोजन का take away resturent है। ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट के सागर रेस्टुरेंट में आपको दस तरह के इडली , डोसा और चटनी मिल जायेंगे और यहाँ से ज्यादा स्वदिस्थ भी मगर ददम है 2 इडली करीं 4 पौंड यानी ३०० रुपये। बर्फवारी के चलते कई दिन हमलोग होटल में ही रहे और कईदिन अपनी बिटिया के साथ ही गुजारे उसकी university, classroom सब गए।
अब हमारे वापस लौटने का दिन आ गया था। बहुत चीजे देखने को रह गयी थी। असल में आप जहा भी यात्रा करते हैं साया और स्थान फिर भी देखने को रह जाते हैं। यही हमारे साथ हुआ ....अगली बार फिर आयेंगे तब देखेंगे ,,,यही अंड है अधूरे प्रवास का जो आप में उत्सुकता बनाये रखता है.....फिर से जाने का....
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